डिजायर पागल बनाती है..

डिजायर पागल बनाती है.. आज आदमी को पता ही नहीं कि उसे क्या चाहिए। इसलिए वह ना समाप्त होने वाली दौड़ में शामिल होकर दिन-रात दौड़ रहा है। वह तो सिर्फ इसलिए दौड़ रहा है कि उससे अगला भी तो दौड़ रहा है, और पिछला भी दौड़ रहा हैजीवन में आदमी की मूलभूत आवशयकताये, रोटी, कपड़ा और मकान है। यह किसी भी सामान्य व्यक्ति की नीड हैइसके अभाव में मनुष्य जी नहीं सकता। अब हम रोटी की बात करते हैं, तो कहावत है दाल-रोटी नीड है, अब दो पैर के इस जानवर को अगर दाल रोटी मिल गई तो इसकी डिजायर होती है कि इसके आगे कुछ मिल जाता तो..!!!! इस तो का जवाब किसी के पास नहीं है, और ना ही इस तो का कोई अंत है। दूसरा, कपड़ा, तो मानव को तन ढकने के लिए 4 मीटर बहुत है, पर ब्रांडेड होता तो..!!!! यह मानव की डिजायर है। तीसरा, मकान, इसका सीधा साधा मतलब है, धूपवर्षा से बचाने के लिए सिर पर छत। पर आदमी कहां मानता है, महल होता तो..!!! यह डिजायर तो ऐसी पीछे पड़ी है, कि आदमी इंसान नहीं रहा, और दिन-रात 'तो' और 'डिजायर' के के पीछे भाग रहा है। उसके लिए इंसानियत बेचकर, धन एकत्रित करता है, जिसे पैदा करने में परेशानी, खर्च करने में परेशानी, और छुपाने में भी परेशानीहम कहना यह चाहते हैं, कि इस डिजायर ने आदमी को पागल बना दिया है। इस पागलपन का रास्ता जेल की ओर जाता है, जहां कई पागल बैठे हैं, और कई पागल जाने के लिए लाइन में लगे हुए हैं, भ्रष्टाचार करके। जय जनरखवाला