खालो गन्ने...

खालो गन्ने...


बहुत पुरानी बात है, एक गांव में मोहर सिंह और हरफूल नाम के दो आदमी, चाचा भतीजा हुआ करते थे। मोहर सिंह और हरफूल की जोड़ी की पूरे गांव वाले मिसाल देते थे। दोनों ही निकरमे और आवारा थे। कोई काम उन्होंने अपने जीवन में नहीं किया। गाओ वाले और परिवार वाले उन दोनों से परेशान थे। एक बार मोहर सिंह और हर फूल ने मिलकर कोई काम धंधा करने की योजना बनाई । योजना बनाते-बनाते दोनों चाचा भतीजा इस निर्णय पर पहुंचे कि गांव के पास अपना जो खेत है उस खेत में अपन मेहनत करके गन्ने उगाएंगे। जिससे अपने को हर साल अच्छी खासी कमाई होती रहेगी। दोनों चाचा भतीजा एकमत होकर कल से खेत में दिन रात एक कर के गन्ने उगाने की योजना को अमलीजामा पहना ही रहे थे कि अचानक चाचा ने कहा कि भाई घने उगने पर गांव वाले अपने खेत से चुरा चुरा कर गन्ने खा जाएंगे तो क्या करेंगे? इस पर भतीजे ने कहा गांव को आग लगा देंगे फिर देखेंगे कैसे गन्ने खाएंगे और दोनों ने तुरंत गांव के आग लगा दी। फिर क्या था देखते ही देखते गांव जल उठा और गांव में कोहराम मच गया तब गांव वालों की नजर चाचा-भतीजा पर पड़ी तो दोनों ने ठेंगा दिखाते हुए एक स्वर में कहा और खा लो गन्ने..!!! जय जनरखवाला..